केंद्र-राज्य संबंध

केंद्र-राज्य संबंध इंटरैक्टिव ऐप

परिचय

यह इंटरैक्टिव एप्लिकेशन भारत के संघीय ढांचे के भीतर केंद्र और राज्यों के बीच जटिल संबंधों को समझने में आपकी सहायता करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। भारत का संविधान केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विस्तृत विभाजन प्रदान करता है, जिसमें विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय क्षेत्र शामिल हैं। यह एप्लिकेशन इन संबंधों के विभिन्न पहलुओं, प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों, महत्वपूर्ण संस्थागत तंत्रों, समकालीन चुनौतियों और विभिन्न आयोगों द्वारा सुझाए गए सुधारों पर प्रकाश डालता है। इसका उद्देश्य एक सहज और जानकारीपूर्ण अनुभव प्रदान करना है, जिससे आप इस महत्वपूर्ण विषय की गहराई को आसानी से समझ सकें।

आगे दिए गए अनुभागों में, आप विभिन्न प्रकार के संबंधों, संबंधित अनुच्छेदों, और उन संस्थाओं के बारे में जानेंगे जो इन संबंधों को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती हैं। साथ ही, उन समकालीन मुद्दों पर भी चर्चा की जाएगी जो केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित करते हैं। इस ऐप में ✨ आइकन वाले बटन आपको जटिल विषयों को सरल शब्दों में समझने या लंबे विवरणों का सारांश प्राप्त करने में मदद करेंगे, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा संचालित है।

विधायी संबंध (अनुच्छेद 245-255)

विधायी संबंध केंद्र और राज्यों के बीच कानून बनाने की शक्तियों के वितरण से संबंधित हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची तीन सूचियाँ प्रदान करती है जो इन शक्तियों को विभाजित करती हैं। यह खंड इन सूचियों, संबंधित महत्वपूर्ण अनुच्छेदों और उन विशेष परिस्थितियों पर प्रकाश डालता है जब संसद राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।

क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 245संसद पूरे भारत या उसके किसी भाग के लिए, और राज्य विधानमंडल अपने राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकता है।)

संसद पूरे भारत या उसके किसी हिस्से के लिए कानून बना सकती है, जबकि राज्य विधानमंडल अपने राज्य के लिए। संसद के पास अतिरिक्त क्षेत्रीय विधान (Extraterritorial Legislation) की भी शक्ति है।

विषयवार वितरण (अनुच्छेद 246सातवीं अनुसूची में वर्णित सूचियों के अनुसार विषयों का वितरण।)

  • संघ सूची: इस पर केवल संसद कानून बना सकती है। (उदा: रक्षा, विदेशी मामले, मुद्रा)। लगभग 98 विषय।
  • राज्य सूची: इस पर सामान्यतः राज्य विधानमंडल कानून बनाते हैं। (उदा: पुलिस, कृषि)। लगभग 61 विषय।
  • समवर्ती सूची: इस पर संसद और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। टकराव में केंद्रीय कानून मान्य। (उदा: शिक्षा, वन)। लगभग 52 विषय।

विधायी विषयों का वितरण (सातवीं अनुसूची)

अवशिष्ट शक्तियाँ (अनुच्छेद 248जो विषय किसी भी सूची में वर्णित नहीं हैं, उन पर विधि बनाने की अनन्य शक्ति संसद में निहित है।)

जो विषय किसी भी सूची में नहीं हैं, उन पर कानून बनाने की शक्ति संसद के पास है।

राज्य सूची पर संसदीय विधान की विशेष परिस्थितियाँ:

  • राष्ट्रीय हित में राज्य सभा के प्रस्ताव द्वारा (अनुच्छेद 249यदि राज्य सभा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से संकल्प पारित करे।)।
  • राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 250आपात की उद्घोषणा के प्रवर्तन में रहने पर संसद को राज्य सूची के किसी भी विषय पर विधि बनाने की शक्ति।)।
  • दो या अधिक राज्यों के अनुरोध पर (अनुच्छेद 252यदि दो या अधिक राज्यों के विधानमंडल संकल्प पारित कर अनुरोध करें।)।
  • अंतर्राष्ट्रीय संधियों को लागू करने के लिए (अनुच्छेद 253किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार या अभिसमय के कार्यान्वयन हेतु।)।
  • राष्ट्रपति शासन के दौरान (अनुच्छेद 356जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो।)।

मुख्य तत्व और सार का सिद्धांत

यह न्यायिक सिद्धांत यह निर्धारित करने में मदद करता है कि कोई विशेष कानून किस विधायिका (केंद्र या राज्य) के अधिकार क्षेत्र में आता है। न्यायालय कानून के 'वास्तविक स्वरूप' या 'मुख्य उद्देश्य' को देखता है, न कि उसके आकस्मिक प्रभावों को।

प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256-263)

प्रशासनिक संबंध केंद्र और राज्यों के बीच कार्यकारी शक्तियों के प्रयोग और समन्वय से संबंधित हैं। यह खंड बताता है कि कैसे केंद्र और राज्य सरकारें अपने प्रशासनिक कार्यों का निर्वहन करती हैं और एक-दूसरे के साथ सहयोग करती हैं।

कार्यपालिका शक्तियों का वितरण

सामान्यतः विधायी शक्तियों के अनुरूप होता है। संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों तक है जिन पर संसद को विधि बनाने की शक्ति है, और राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों तक है जिन पर राज्य विधानमंडल को विधि बनाने की शक्ति है।

राज्यों का दायित्व (अनुच्छेद 256प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग किया जाएगा कि संसद द्वारा बनाई गई विधियों का अनुपालन सुनिश्चित रहे।)

राज्यों को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। यदि राज्य ऐसा करने में विफल रहते हैं तो अनुच्छेद 365यदि कोई राज्य संघ द्वारा दिए गए किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफल रहता है, तो राष्ट्रपति के लिए यह मानना विधिपूर्ण होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता। के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।

केंद्र द्वारा राज्यों को निर्देश (अनुच्छेद 257संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्यों को ऐसे निदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को आवश्यक प्रतीत हों।)

केंद्र सरकार राज्यों को निम्नलिखित विषयों पर निर्देश दे सकती है:

  • राष्ट्रीय या सैनिक महत्व के संचार साधनों का निर्माण और रखरखाव करना।
  • राज्यों में रेलों के संरक्षण के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में।
  • भाषाई अल्पसंख्यकों के बच्चों के लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करना (अनुच्छेद 350Aप्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा।)।
  • अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन।

अखिल भारतीय सेवाएं (अनुच्छेद 312यदि राज्य सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों में से कम से कम दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा यह घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो संसद, विधि द्वारा, संघ और राज्यों के लिए सम्मिलित एक या अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी।)

ये सेवाएं (जैसे IAS, IPS, IFS) केंद्र और राज्यों दोनों के लिए समान हैं। इनका नियंत्रण साझा होता है किन्तु अंतिम प्राधिकार केंद्र सरकार के पास होता है। ये राष्ट्रीय एकता और प्रशासन में एकरूपता सुनिश्चित करने में मदद करती हैं।

आपातकाल के दौरान प्रशासनिक संबंध

  • राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण आपात की उद्घोषणा।): केंद्र किसी भी विषय पर राज्यों को निर्देश दे सकता है।
  • राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध।): केंद्र राज्य के प्रशासनिक कार्यों को अपने अधीन ले सकता है।
  • वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360वित्तीय आपात के बारे में उपबंध।): केंद्र राज्यों को वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों का पालन करने के निर्देश दे सकता है।

वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 264-300A)

वित्तीय संबंध केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व के स्रोतों के वितरण और वित्तीय संसाधनों के आवंटन से संबंधित हैं। यह खंड कर लगाने की शक्तियों, करों के वितरण और सहायता अनुदानों पर केंद्रित है।

करों का अधिरोपण (अनुच्छेद 265विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना।)

"कोई भी कर विधि के प्राधिकार के बिना अधिरोपित या संगृहीत नहीं किया जाएगा।"

करों का वितरण (अनुच्छेद 268-271)

राजस्व साझाकरण की मुख्य बातें:

  • अनुच्छेद 268:संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाले किन्तु राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क (जैसे स्टाम्प शुल्क)। केंद्र लगाता है, राज्य वसूलते और रखते हैं।
  • अनुच्छेद 269:संघ द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर (जैसे अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल की बिक्री या खरीद पर कर)। केंद्र लगाता और वसूलता है, पर राज्यों को सौंपता है।
  • अनुच्छेद 269A:अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल और सेवाओं की आपूर्ति पर IGST। यह संघ द्वारा लगाया और एकत्र किया जाता है तथा GST परिषद की सिफारिशों के अनुसार संघ और राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है। अंतर-राज्यीय आपूर्ति पर IGST (GST परिषद की सिफारिश पर साझा)।
  • अनुच्छेद 270:संघ द्वारा उद्गृहीत और संगृहीत तथा संघ और राज्यों के बीच वितरित किए जाने वाले कर (जैसे आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क के कुछ भाग)। वित्त आयोग की सिफारिशों पर वितरण होता है। केंद्र लगाता और वसूलता है, फिर केंद्र-राज्यों में बंटता है।
  • अनुच्छेद 271:कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए अधिभार (Surcharge)। अधिभार से प्राप्त आय पूरी तरह से केंद्र के पास रहती है और राज्यों के साथ साझा नहीं की जाती है। अधिभार (Surcharge) पूरी तरह केंद्र का।

रॉयल्टी

मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (2024) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि रॉयल्टी कर नहीं है। खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति राज्यों के पास है।

सहायता अनुदान (Grants-in-Aid)

अनुदान का प्रकार संवैधानिक आधार विवरण
वैधानिक अनुदान अनुच्छेद 275कुछ राज्यों को संघ से अनुदान। वित्त आयोग की सिफारिशों पर आधारित। वित्त आयोग की सिफारिश पर, जरूरतमंद राज्यों या जनजातीय कल्याण हेतु।
विवेकाधीन अनुदान अनुच्छेद 282संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से किए जा सकने वाले व्यय। ये किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए हो सकते हैं। केंद्र द्वारा किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए स्वविवेक से।

संस्थागत तंत्र

केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय के लिए विभिन्न संस्थागत तंत्र स्थापित किए गए हैं। ये निकाय वित्तीय मामलों, नीति निर्माण, और विवाद समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वित्त आयोग (अनुच्छेद 280राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पाँचवें वर्ष की समाप्ति पर या ऐसे पूर्वतर समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझता है, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।)

करों के वितरण और अनुदान पर सिफारिशें करता है।

जीएसटी परिषद (अनुच्छेद 279Aमाल और सेवा कर से संबंधित मामलों पर संघ और राज्यों को सिफारिशें करने के लिए एक जीएसटी परिषद।)

GST से संबंधित मामलों पर सिफारिश करती है। सहकारी संघवाद का उदाहरण।

नीति आयोग

भारत सरकार का 'थिंक टैंक', सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है।

अंतर-राज्य परिषद (अनुच्छेद 263यदि किसी समय राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि ऐसी परिषद की स्थापना से लोक हित की सिद्धि होगी तो वह आदेश द्वारा ऐसी परिषद की स्थापना कर सकेगा।)

विवादों की जांच, साझा हित के विषयों पर चर्चा और सिफारिशें। संरचना में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि शामिल।

क्षेत्रीय परिषदें

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित वैधानिक निकाय। क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा। केंद्रीय गृह मंत्री अध्यक्ष।

अंतर-राज्यीय जल विवाद (अनुच्छेद 262अंतर-राज्यीय नदियों या नदी-दूनों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन।)

संसद द्वारा बनाए गए कानून के तहत न्यायाधिकरणों के माध्यम से समाधान।

समकालीन मुद्दे और चुनौतियाँ

केंद्र-राज्य संबंध गतिशील हैं और विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हैं। यह खंड विशेष श्रेणी का दर्जा, राज्यपाल की भूमिका, और दिल्ली शासन जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालता है।

विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS)

पिछड़े राज्यों के विकास हेतु। 14वें वित्त आयोग बाद औपचारिक रूप से समाप्त, पर कुछ राज्यों को विशेष सहायता जारी।

राज्यपाल की भूमिका

विधेयकों को मंजूरी में देरी (अनुच्छेद 200विधेयकों पर अनुमति।), विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग (अनुच्छेद 163राज्यपाल को सहायता और सलाह।) और केंद्र के एजेंट के आरोपों से विवादित। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार हस्तक्षेप किया है।

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2023

दिल्ली में सेवाओं पर उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार पर प्रधानता। NCCSA की स्थापना। शक्तियों के पृथक्करण पर बहस।

केंद्र-राज्य संघर्ष के कुछ उदाहरण:

  • विधायी: समवर्ती सूची में अतिक्रमण (अनुच्छेद 254केंद्रीय विधि अभिभावी।), राज्य सूची पर कानून, राज्यपाल द्वारा विधेयक रोकना।
  • प्रशासनिक: अखिल भारतीय सेवाओं पर नियंत्रण, राज्यपाल की भूमिका, केंद्रीय एजेंसियों का हस्तक्षेप।
  • वित्तीय: राजकोषीय असंतुलन, GST मुआवजा, केंद्रीय योजनाओं का बोझ।

केंद्र-राज्य संबंधों पर आयोगों की सिफारिशें

विभिन्न आयोगों ने केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार हेतु महत्वपूर्ण सिफारिशें दी हैं। यह खंड सरकारिया, पुंछी और प्रशासनिक सुधार आयोग की मुख्य अनुशंसाओं पर प्रकाश डालता है।

सरकारिया आयोग (1983-1987)

न्यायमूर्ति आर. एस. सरकारिया की अध्यक्षता में। मुख्य दृष्टिकोण: "राज्यों को कमजोर किए बिना संघ को सशक्त बनाना"।

प्रमुख सिफारिशें:

  • राज्यपाल: नियुक्ति से पहले मुख्यमंत्री से प्रभावी परामर्श। गैर-पक्षपाती व्यक्ति। 5 वर्ष का कार्यकाल।
  • अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन): अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में और अंतिम उपाय के रूप में।
  • अंतर-राज्य परिषद: अनुच्छेद 263अंतर-राज्य परिषद की स्थापना। के तहत स्थायी परिषद।
  • विधायी मामले: समवर्ती सूची पर कानून से पहले राज्यों से परामर्श।
  • वित्तीय मामले: निगम कर राज्यों से साझा हो।
  • अखिल भारतीय सेवाएं: और मजबूत हों।

पुंछी आयोग (2007-2010)

न्यायमूर्ति मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में।

प्रमुख सिफारिशें:

  • राज्यपाल: नियुक्ति हेतु सरकारिया आयोग के मानदंड समर्थित। हटाने हेतु महाभियोग जैसी प्रक्रिया। 5 वर्ष का निश्चित कार्यकाल।
  • अनुच्छेद 356: प्रयोग को और सीमित करने का सुझाव। 'स्थानीयकृत आपातकाल' का प्रावधान।
  • अंतर-राज्य परिषद: और अधिक प्रभावी बनाने का सुझाव।
  • समवर्ती सूची: केंद्र राज्यों से व्यापक सहमति बनाए।
  • सांप्रदायिक सौहार्द: केंद्र सीमित अवधि के लिए केंद्रीय बल तैनात कर सके।
  • संधियाँ: राज्यों को प्रभावित करने वाली संधियों पर हस्ताक्षर से पहले राज्यों से परामर्श।

प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) (1966-1970)

मोरारजी देसाई (बाद में के. हनुमंथैया) की अध्यक्षता में।

प्रमुख सिफारिशें:

  • अनुच्छेद 263अंतर-राज्य परिषद की स्थापना। के अंतर्गत अंतर-राज्य परिषद की स्थापना।
  • राज्यपाल अनुभवी और गैर-दलीय हो।
  • राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन।
  • शक्तियों का अधिकतम प्रत्यायोजन राज्यों को।
  • केंद्र द्वारा राज्यों को निर्देश (अनुच्छेद 256राज्यों और संघ के दायित्व।, 257कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण।) का संयमित प्रयोग।
  • राज्य के अनुरोध या आवश्यकता पर ही केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती।

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