आनुवंशिकी नोट्स /Genetics Notes FOR LSA 2025

आनुवंशिकी नोट्स | Genetics Notes

आनुवंशिकी के महत्वपूर्ण नोट्स

Comprehensive Genetics Notes

1. आनुवंशिकी (Genetics) - परिचय

आनुवंशिकी शब्द: बेटसन (Bateson) - Father of modern genetics

आनुवंशिकी: वंशानुगति (Heredity) + विभिन्नताएँ (Variation)

वंशानुगति (Heredity): आनुवंशिक लक्षणों का पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होना।

विभिन्नताएँ (Variation): एक ही जाति के सदस्यों में असमानता/भिन्नता होना। किसी जीव का विभिन्न गुणों में माता-पिता से भिन्नता।

2. विभिन्नताएँ (Variations)

Genetic (आनुवंशिक)

  • Additive genetic variance (Va):
    • Breeding value के कारण
    • नये जीनों से संतान में नये जीनों के प्रवेश के कारण
  • Non-Additive Genetic Variance:
    • Dominance deviation variance (Vd): प्रभावी जीन के कारण
    • Epistatic variance (Vi): जीन के एपिस्टैटिक प्रभाव के कारण

Environmental (पर्यावरणीय)

(इसके तहत कोई उप-बिंदु नोट में नहीं दिया गया था)

Phenotypic Variance (VP): VP = VG + VE

Genotypic Variance (VG): VG = VA + VD + VI

So, VP = VA + VD + VI + VE

विभिन्नताओं के प्रकार:

जनिक (Genetic)

  • सतत (Continuous): Crossing over के कारण
  • असतत (Discontinuous): Mutation के कारण (जैव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका)

कायिक (Somatic)

(इसके तहत कोई उप-बिंदु नोट में नहीं दिया गया था)

3. गुणसूत्र (Chromosomes)

  • गुणसूत्र के खोजकर्ता: STRASBURGER (1875)
  • क्रोमोसोम शब्द दिया: Waldeyer (1889) (नोट में Waldeyer दिया है, सामान्यतः Waldeyer होता है)
  • क्रोमैटिन शब्द: Flemming
  • वंशागति का गुणसूत्री सिद्धांत: Sutton & Boveri
  • क्रोमैटिन पदार्थ संघनित होकर क्रोमोसोम (गुणसूत्र) बनाते हैं।
  • क्रोमोसोम का अध्ययन मेटाफेज अवस्था में करते हैं।
  • क्रोमोसोम आकृति का अध्ययन एनाफेज में करते हैं (V, L, J, I आकार)।
  • जाति विशेष के गुणसूत्रों की विशिष्ट बाह्य आकारिकी: कैरियोटाइप (Karyotype)
  • कैरियोटाइप का आरेखी प्रदर्शन: इडियोग्राम (Idiogram)

गुणसूत्र के प्रकार:

  1. कायिक गुणसूत्र / ऑटोसोम्स (Autosomes)
  2. लिंग गुणसूत्र / हेटेरोसोम्स / एलोसोम्स (Sex chromosomes / Heterosomes / Allosomes)
    • लिंग गुणसूत्र के खोजकर्ता: McClung
    • X-chromosome की खोज: Henking

सेंट्रोमियर की स्थिति के आधार पर गुणसूत्रों के प्रकार:

1. Telocentric: I-shape
2. Acrocentric: J-shape
3. Metacentric: V-shape
4. Sub-metacentric: L-shape

गुणसूत्र की संरचना के भाग:

क्रोमैटिड के अंदर धागे समान संरचना - क्रोमोनेमा (डी.एन.ए. व हिस्टोन के बने होते हैं)।

क्रोमोनेमा तंतुओं पर दोनों समान संरचना - क्रोमोमियर।

  1. पेलीकल (Pellicle)
  2. क्रोमैटिड (Chromatid)
  3. क्रोमोनेमा / क्रोमोनेमेटा (Chromonema / Chromonemata)
  4. सेंट्रोमीयर (Centromere)
  5. मैट्रिक्स (Matrix)
  6. क्रोमोमियर (Chromomere)

4. विभिन्न जानवरों में गुणसूत्रों की संख्या (2N)

जानवर गुणसूत्रों की संख्या (2N)
बिल्ली / सूअर38
स्वॅम्प बफेलो (Swamp Buffalo)48
रिवराइन बफेलो (Riverine Buffalo)50
भेड़54
गाय / बकरी60
गधा62
खच्चर63
घोड़ा64
ऊँट74
कुत्ता / मुर्गा78
मटर (पाइसम सेटाइवम)14

5. आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material): DNA तथा RNA

DNA (Deoxyribonucleic Acid)

  1. डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक एसिड
  2. दोहरी कुंडलित संरचना
  3. सभी प्रोकैरियोटिक (उच्च कोशिकीय) सजीवों में आनुवंशिक पदार्थ
  4. संघटन:
    • डीऑक्सीराइबोज शर्करा
    • फॉस्फेट समूह
    • नाइट्रोजन क्षार:
      • प्यूरिन: एडेनिन (A), गुआनिन (G)
      • पिरिमिडीन: थायमिन (T), साइटोसिन (C)
  5. चारगाफ के नियम का पालन करता है (प्यूरिन = पिरिमिडीन)
  6. द्विगुणन (Replication) की क्षमता उपस्थित
  7. DNA के प्रकार: A, B, Z

RNA (Ribonucleic Acid)

  1. राइबोज न्यूक्लिक एसिड
  2. एकल रज्जुकी संरचना
  3. पेड़-पौधों व वायरस में आनुवंशिक पदार्थ
  4. संघटन:
    • राइबोज शर्करा
    • फॉस्फेट समूह
    • नाइट्रोजन क्षार:
      • प्यूरिन: एडेनिन (A), गुआनिन (G)
      • पिरिमिडीन: यूरेसिल (U), साइटोसिन (C)
  5. चारगाफ के नियम का पालन नहीं करता
  6. द्विगुणन (Replication) की क्षमता अनुपस्थित
  7. RNA के प्रकार: mRNA, rRNA, tRNA

DNA व RNA न्यूक्लियोटाइड के बहुलक होते हैं।

न्यूक्लियोसाइड: शर्करा + N2 क्षार

न्यूक्लियोटाइड: शर्करा + N2 क्षार + फॉस्फेट समूह

एडेनिन व थायमिन के मध्य दो हाइड्रोजन बंध होते हैं।

गुआनिन व साइटोसिन के मध्य तीन हाइड्रोजन बंध होते हैं।

डी.एन.ए. का द्विरज्जुकी कुंडलित मॉडल वाटसन एवं क्रिक ने 1953 में दिया।

डी.एन.ए. के दोनों रज्जु प्रतिसमानान्तर 5'-3' व 3'-5' दिशा में होते हैं।

डी.एन.ए. के एक कुंडलन की लम्बाई: 34 Å (या 3.4 nm)

एक कुंडलन में न्यूक्लियोटाइड की संख्या: 10

दो न्यूक्लियोटाइडों के मध्य दूरी: 3.4 Å (या 0.34 nm)

कुंडलन का व्यास: 20 Å (या 2.0 nm)

दो नाइट्रोजन क्षारों के मध्य बंध: हाइड्रोजन बंध

शर्करा व नाइट्रोजन क्षार के मध्य बंध: ग्लाइकोसाइडिक बंध

न्यूक्लियोटाइडों के मध्य बंध: फास्फोडाइएस्टर बंध

ट्रांसक्रिप्शन (Transcription): DNA → RNA

ट्रांसलेशन (Translation): RNA → प्रोटीन

रेप्लीकेशन (Replication): DNA → DNA

6. उत्परिवर्तन (Mutation)

  • खोजकर्ता: मॉर्गन (Morgan)
  • उत्परिवर्तन शब्द: ह्यूगो डी ब्रीज (Hugo de Vries)
  • उत्परिवर्तन की इकाई: म्यूटन (Muton)
  • किसी जीव के जननिक पदार्थ में अचानक उत्पन्न होने वाले वंशानुगत परिवर्तन उत्परिवर्तन कहलाते हैं।
  • ये होते हैं: 1. अप्रभावी, 2. घातक, 3. हानिकारक, 4. असतत
  • Hot Spot: DNA में वह स्थान जहाँ उत्परिवर्तन की आवृत्ति सर्वाधिक होती है।

उत्परिवर्तन के प्रकार:

A. स्वाभाविक उत्परिवर्तन (Spontaneous Mutation)

  • इनके उत्पन्न होने की प्रक्रिया बहुत धीमी।
  • निश्चित कारक का पता नहीं होता।
  • अधिकांश उत्परिवर्तन इसी प्रकार के होते हैं।

B. जीन उत्परिवर्तन / बिंदु उत्परिवर्तन (Gene/Point Mutation)

नाइट्रोजन क्षारकों युग्मों में परिवर्तन के कारण।

1. प्रतिस्थापन (Substitution)

एक नाइट्रोजन क्षारक का अन्य नाइट्रोजन क्षार द्वारा विस्थापन। (उदा. सिकल सेल एनीमिया)

a. संक्रांति (Transition): प्यूरिन का अन्य प्यूरिन या पिरिमिडीन का अन्य पिरिमिडीन से विस्थापन। कारक: नाइट्रस अम्ल (HNO3)
b. अनुपथन (Transversion): प्यूरिन का पिरिमिडीन या पिरिमिडीन का प्यूरिन N2 क्षार से विस्थापन। कारक: EMS (एथिल मेथिल सल्फोनेट), MMS (मेथिल मेथेन सल्फोनेट), X-RAYS
2. फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन (Frame Shift Mutation)

कुछ रसायनों द्वारा एक या दो N2 क्षारकों का जुड़ना या हटना।

C. प्रेरित उत्परिवर्तन (Induced Mutation)

रसायनों या अन्य चीजों द्वारा प्रेरित करके उत्पन्न किया जाता है।

सर्वप्रथम खोजा गया उत्परिवर्तन जन रसायन: मस्टर्ड गैस (Mustard gas)

गुणसूत्रीय उत्परिवर्तन (Chromosomal Mutation)

1. संरचनात्मक परिवर्तन (Structural Changes) / गुणसूत्री विपथन (Chromosomal Aberration)

  • Deletion (अभाव): गुणसूत्र के किसी खंड का टूटकर अलग होना और उस गुणसूत्रीय खंड से सम्बंधित जीनों की कमी होना। (उदा. 5वें गुणसूत्र की छोटी भुजा के आधे हिस्से के विलोपन होने से - क्राई डू कैट सिंड्रोम)
  • Duplication (द्विगुणन): गुणसूत्र पर किसी खंड का दो बार उपस्थित होना। (अप्रभावी घातक जीन समयुग्मजी अवस्था में आने के कारण जीव की मौत का कारण बनती है)
  • Inversion (प्रतीपन): गुणसूत्र के किसी खंड का टूटकर जुड़ना लेकिन जुड़ने का क्रम बदल जाना / उल्टा हो जाना।
  • Translocation (स्थानांतरण): किसी गुणसूत्र के एक भाग का टूटकर दूसरे असमजात गुणसूत्र से जुड़ जाना।
    • Simple: गुणसूत्र के एक भाग का टूटकर दूसरे असमजात गुणसूत्र के अन्तस्थ सिरे पर जुड़ना।
    • Interstitial: गुणसूत्र का भाग दूसरे असमजात गुणसूत्र के मध्य में जाकर जुड़ना।
    • Reciprocal: दो असमजात गुणसूत्रों के मध्य गुणसूत्री खंड का आदान-प्रदान।

2. संख्या में परिवर्तन (Numerical Changes) / जीनोमेटिक उत्परिवर्तन (Genomatic Mutation / Heteroploidy)

a. सुगुणिता (Euploidy)

गुणसूत्रीय सेट की संख्या में कमी या वृद्धि।

  • Monoploidy (n) (नोट में 2n-n लिखा है, जो सामान्यतः n होता है)
  • Polyploidy:
    • Triploidy (2n+n = 3n)
    • Tetraploidy (2n+2n = 4n)
b. असुगुणिता (Aneuploidy)

गुणसूत्रों की संख्या में (एक या कुछ) कमी या वृद्धि।

Hypoaneuploidy (हाइपोएन्युप्लॉइडी):
  • Monosomy (2n-1): एक सेट में एक गुणसूत्र की कमी।
  • Double monosomy (2n-1-1): प्रत्येक सेट में एक-एक (दो विभिन्न) गुणसूत्र की कमी।
  • Nullisomy (2n-2): एक समजात गुणसूत्र जोड़े (2 गुणसूत्र) की कमी।
Hyperaneuploidy (हाइपरएन्युप्लॉइडी):
  • Trisomy (2n+1)
  • Double trisomy (2n+1+1)
  • Tetrasomy (2n+2)

7. गुणसूत्रों की असामान्यताएँ (Chromosomal Abnormalities)

A. लिंग गुणसूत्रों की असामान्यता (Sex Chromosome Abnormalities)

सिंड्रोम गुणसूत्र स्थिति बार बॉडी की संख्या (No. of Barr Body)
क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम (Klinefelter Syndrome)44 + XXY1
टर्नर सिंड्रोम (Turner Syndrome)44 + XO0
सुपर नर (Super Male)44 + XYY0
सुपर मादा (Super Female)44 + XXX2

B. कायिक गुणसूत्रों की असामान्यता (Autosomal Abnormalities)

  • पटाऊ सिंड्रोम (Patau Syndrome): 13वें गुणसूत्र की अधिकता (Trisomy 13)
  • एडवर्ड सिंड्रोम (Edward Syndrome): 18वें गुणसूत्र की अधिकता (Trisomy 18)
  • डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome): 21वें गुणसूत्र की अधिकता (Trisomy 21)

8. प्रजनन पद्धतियाँ (Systems of Mating)

Father of modern animal breeding: J.L. Lush

A. अंतःप्रजनन (Inbreeding)

पशु अत्यधिक निकट संबंधी पशुओं (नर व मादा) के बीच संगम/क्रॉस जनन को अंतःप्रजनन कहते हैं। या परस्पर संबंधी पशुओं के मध्य जनन।

लाभ:

  • समयुग्मजता (Homozygosity) बढ़ती है, विषमयुग्मजता (Heterozygosity) घटती है।
  • Seed stock और pure inbreed line बनाने में।
  • अवांछित अप्रभावी जीनों को हटाने में।
  • Pure breed जानवर बनाने में।

हानि:

  • वृद्धि, शारीरिक क्षमता, उत्पादन, जननक्षमता, प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
  • भ्रूणमृत्युदर बढ़ती है (Inbreeding depression)।

अंतःप्रजनन के प्रकार:

  • Close Breeding: यह अंतःप्रजनन का सबसे प्रबल रूप है। इसमें एक जाति के अत्यधिक निकट संबंधी पशुओं के मध्य क्रॉस कराया जाता है (सगे भाई-बहन, माता-पिता, पिता-पुत्री के मध्य संगम)।
  • Strain Breeding: यह अंतःप्रजनन की milder फॉर्म है। इसमें एक ही जाति के दो अलग-अलग स्ट्रेनों के मध्य क्रॉस कराया जाता है। (+ve increase homozygosity). Ex: Australian W.L.H * English W.L.H.
  • Line Breeding: यह एक प्रकार का अंतःप्रजनन है। इसमें किसी विशेष लक्षण को एक जाति में बनाए रखने के लिए निकट संबंधियों में क्रॉस कराया जाता है (जैसे दादा-पोती, पोता-दादी)।
    • लाभ: इसके द्वारा किन्हीं विशेष गुणों से सम्बंधित एक लाइन/परिवार तैयार किया जाता है। सुअर और मुर्गी में इस पद्धति द्वारा अवांछित जीनों का पता लगाकर हटाया जाता है। इसके द्वारा प्रभावी जीनों का समयुग्मजीयता अवस्था में आ जाने के कारण पशुओं में प्रणुतता (Prepotency) आ जाती है।
    • Prepotency: जब कोई जनक अन्य जनक की अपेक्षा किसी गुण की संतति में प्रभावी छाप छोड़ता है।

B. बहिःप्रजनन (Outbreeding)

ऐसा प्रजनन जिसमें असंबंधित पशुओं के मध्य क्रॉस कराया जाता है, अर्थात् जिनका पिछली 5-6 पीढ़ियों में कोई पूर्वज समान नहीं होता है।

लाभ (सामान्य):

  • विषमयुग्मजता (Heterozygosity) बढ़ती है।
  • विभिन्नताएँ बढ़ती हैं।
  • Production, vigour (ओज/शक्ति) बढ़ता है।
  • रोग प्रतिरोधकता बढ़ती है।
  • इसमें हेटेरोसिस (Heterosis) और हाइब्रिड विगर (Hybrid Vigour) बढ़ता है।

बहिःप्रजनन के प्रकार:

  • Outcrossing: किसी एक ही जाति के दो असंबंधित शुद्ध जानवरों के मध्य क्रॉस outcrossing कहलाता है। यह जेनेटिक सुधार का सबसे अच्छा तरीका है। यह किसी लक्षण में परिवर्तन लाने में मदद करता है। यह आनुवंशिक लक्षणों के लिए अच्छा होता है।
  • Cross Breeding: इसमें पूर्ण रूप से स्थापित भिन्न नस्लों के मध्य क्रॉस कराया जाता है। Ex: H.F. (sire) * Deoni (cow) → Holdeo; Murrah (bull) * Surti (buffalo).
    • लाभ: यह विभिन्न जातियों के अच्छे गुणों को एक जाति में लाने के लिए उपयोगी है (अच्छे उत्पादन के लिए है)। क्रॉस ब्रीड का उपयोग अच्छे उत्पादन के लिए किया जाता है, न कि breeding purpose के लिए।
    • प्रकार:
      1. Two breed crossing: जब cross breeding में दो भिन्न जातियों का उपयोग किया जाता है। E.g., H.F * Deoni → Holdeo.
      2. Three breed crossing: क्रॉस ब्रीड मादा का तीसरी ब्रीड के नर से क्रॉस। E.g., (HF * Deoni) F1 * Jersey → F2.
      3. Backcrossing: संकर मादा का उसके शुद्ध माता/पिता से क्रॉस। E.g., (H.F * Deoni) F1 * H.F → F2.
      4. Sequence crossing / Rotational crossing: इसमें दो या दो से अधिक जातियों के नर का उपयोग क्रमवार किया जाता है।
      5. Line crossing: दो या दो से अधिक inbreed line के मध्य क्रॉस।
        • Incrossing: जब inbreed line एक जाति से सम्बंधित होते हैं।
        • Incross breeding: जब inbreed line अलग-अलग जातियों से सम्बंधित होते हैं।
      6. Top crossing: Inbreed male का क्रॉस non-inbreed जनसंख्या की मादा से कराया जाता है।
    • Inter se mating: जब एक समान जीनोटाइप रखने वाली संततियों के मध्य क्रॉस कराया जाता है तो इसे interse-mating कहते हैं।
  • Grading Up: Purebred sire * Nondescript female & offspring in successive generation. जब किसी जाति के शुद्ध सांड का संकरण, non-descript मादा और उसकी संततियों से कराया जाये।
    • लाभ: Nondescript जानवर में सुधार करने में। (F6 में 98.43% लक्षण आ जाते हैं, F7 में 99.21%, F8 में 99.609%)। यह कुछ पीढ़ियों के बाद नई शुद्ध जाति बनाने में मदद करती है।
  • Species Hybridization: इसमें दो भिन्न प्रजातियों (species) के मध्य क्रॉस कराया जाता है। यह outbreeding की extreme form (चरम अवस्था) है।
    • लाभ: इससे उत्पन्न संततियों में अधिक vigour (ओज/शक्ति) होता है और प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
    • हानि: ये सामान्यतः बाँझ (sterile) होते हैं।
    • उदाहरण: Male Ass (Jack) * Mare → Mule; Female Ass (Jennet) * Stallion → Hinny; Zebra * Horse → Zebroid (Zorse); Cattle * Yak → Dzo/Plen Niu; Cattle * Bison → Cattalo; Tiger (Male) * Lion (Female) → Tigon; Lion (Male) * Tiger (Female) → Liger; Goat * Sheep → Geep.

अन्य संबंधित शब्द:

  • Nicking: जब कोई संतति आशा से अधिक उत्पादन देती है या अच्छा प्रदर्शन करती है तो इसे निकिंग कहते हैं।
  • Telegony: यह एक अवधारणा है कि जब एक मादा को नर सांड से क्रॉस कराया जाता है तो जो बच्चा पैदा होता है वह बच्चा पिछले सांड (जिससे पहले क्रॉस कराया गया था) के कुछ लक्षणों को प्रदर्शित करता है। (यह एक अस्वीकृत सिद्धांत है)

Close Breeding vs Line Breeding तुलना:

बिंदुClose BreedingLine Breeding
संबंधClosely related जानवरों के मध्यकम सम्बंधित जानवरों के मध्य क्रॉस
उदाहरणFull brother * Full sisterHalf brother * Half sister
चयन आधारजानवर को व्यक्तिगत लाभगुणों के आधार पर चयनित किया जाता हैMild (कमजोर) अवस्था है। Pedigree record के आधार पर।
समयुग्मजतातेजी से बढ़ती हैधीरे-धीरे बढ़ती है
लक्षण विकासवांछनीय व अवांछनीय लक्षण तेजी से विकसित होते हैंधीरे-धीरे विकसित होते हैं
घातकतायह अधिक घातक हैयह कम घातक है

9. लिंग निर्धारण (Sex Determination)

By Dr. K.K. Singh

जीवों की शुरुआती अवस्था में भ्रूण निर्माण एवं परिवर्धन के समय लिंग का निर्धारित होना लिंग निर्धारण कहलाता है। लिंग निर्धारण की विधि विभिन्न जीवों में अलग-अलग होती है, जैसे लिंग गुणसूत्र की उपस्थिति या अनुपस्थिति से, वातावरण द्वारा आदि।

निषेचन के आधार पर:

  • Progamic: लिंग निर्धारण निषेचन से पहले हो जाता है।
  • Syngamic: लिंग निर्धारण निषेचन के समय (max animals)।
  • Epigamic: निषेचन के पश्चात् (जैसे Honeybee में मादा का बनना)।

गुणसूत्रों द्वारा:

गुणसूत्र दो प्रकार के होते हैं: 1. ऑटोसोम्स (कायिक गुणसूत्र), 2. एलोसोम्स/हेटेरोसोम्स (लिंग गुणसूत्र)।

Sex chromosomes की खोज सर्वप्रथम McClung ने की। X-chromosome की खोज Henking ने।

लिंग निर्धारण की क्रोमोसोम थ्योरी Wilson एवं Stevens ने दी।

  1. XX - XY प्रकार (Lygaeus प्रकार):
    • मादा XX (Homogametic), नर XY (Heterogametic)
    • अर्थात् मादा एक ही प्रकार के व नर दो प्रकार के युग्मक बनाता है।
    • X-गुणसूत्र युक्त युग्मक को Gynosperm, Y-गुणसूत्र युक्त युग्मक को Androsperm.
    • Ex: मनुष्य, गाय, भैंस, आदि, ड्रोसोफिला।
  2. ZW - ZZ प्रकार (या XY मादा, XX नर):
    • मादा ZW/XY (Heterogametic), नर ZZ/XX (Homogametic)
    • Ex: पक्षियों, मछलियों में, रेप्टाइल्स में।
  3. XX (मादा) - XO (नर) प्रकार:
    • इसमें नर में एक X गुणसूत्र की कमी पाई जाती है। मादा समयुग्मकी, नर विषमयुग्मकी।
    • Ex: टिड्डे, कॉकरोच में, एस्केरिस में।
  4. अगुणित-द्विगुणित विधि (Haplo-diploidy mechanism):
    • Ex: मधुमक्खी व ततैया आदि।
    • नर: अगुणित (n) अनिषेचित अंडों से।
    • मादा: द्विगुणित (2n) निषेचित अंडों से।

वातावरण द्वारा:

  • बोनेलिया (Bonellia): यह एक समुद्री कृमि है। यदि यह (लार्वा) मादा के पास विकसित होता है तो नर बनता है। यदि मादा से दूर रहकर विकसित होता है तो मादा बनता है। यदि कुछ समय मादा के पास रहता है फिर अलग हो जाता है तो यह मध्यलिंगी बनता है।

अन्य संबंधित शब्द:

  • गाइनेन्ड्रोमॉर्फ (Gynandromorph): कुछ ड्रोसोफिला में आधा शरीर नर व आधा शरीर मादा होता है। इन्हें गाइनेन्ड्रोमॉर्फ कहते हैं। कारण: असामान्य समसूत्री विभाजन।
  • फ्रीमार्टिन (Freemartin): जब नर व मादा भ्रूण का विकास मादा के गर्भ में उभयनिष्ठ रुधिर प्रवाह/प्लेसेंटा द्वारा होता है तो नर तो सामान्य होता है जबकि मादा बाँझ होती है। क्योंकि नर जननांग पहले विकसित हो जाते हैं जिससे नर लिंग हार्मोन का स्राव होता है जो मादा भ्रूण के जननांगों को भलीभाँति विकसित नहीं होने देते हैं।

10. शुक्रजनन (Spermatogenesis)

By Dr. K.K. Singh

शुक्राणुओं के निर्माण को शुक्रजनन कहते हैं। शुक्रजनन वृषण की सेमनीफेरस नलिकाओं में होता है। सेमनीफेरस नलिकाओं में सरटोली कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करती हैं।

शुक्रजनन के चरण:

  1. शुक्राणुपूर्व / प्रशुक्राणु का निर्माण (Formation of Spermatids):
    • गुणन अवस्था (Multiplication Phase): लैंगिक परिपक्वता के समय सेमनीफेरस नलिका की जननिक उपकला द्वारा Spermatogonial cell का निर्माण तेजी से होता है। ये समसूत्री विभाजन द्वारा अपनी संख्या में वृद्धि करती हैं। (Spermatogonium 2n → Daughter Spermatogonium 2n)
    • वृद्धि अवस्था (Growth Phase): इस अवस्था में स्पर्मेटोगोनिया सरटोली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त करके आकार में वृद्धि करके प्राथमिक शुक्र कोशिका (Primary Spermatocyte 2n) का निर्माण करती हैं।
    • परिपक्वन अवस्था (Maturation Phase): इस अवस्था में Primary Spermatocyte में दो विभाजन होते हैं।
      • प्रथम विभाजन (Meiosis I): यह विभाजन अर्धसूत्री प्रकार का होता है। अर्थात् इसमें Primary Spermatocyte से बनने वाली पुत्री कोशिकाएँ (Secondary Spermatocyte n) कहलाती हैं, इनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी (n) रह जाती है।
      • द्वितीय विभाजन (Meiosis II): इन Secondary Spermatocytes में दूसरा विभाजन समसूत्री प्रकार का होता है। इससे बनने वाली पुत्री कोशिकाओं (Spermatids n) में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित (n) होती है।
      अतः इस प्रकार एक द्विगुणित प्राथमिक शुक्र कोशिका से चार अगुणित (n) शुक्राणुपूर्व (Spermatids) का निर्माण होता है। ये स्पर्मेटिड अगतिशील होते हैं व निषेचन की क्षमता नहीं पाई जाती है।
  2. शुक्राणुजनन / स्पर्मियोजेनेसिस (Spermiogenesis):

    स्पर्मेटिड से स्पर्म (Spermatozoa n) बनने की क्रिया ही शुक्राणुजनन/स्पर्मियोजेनेसिस कहलाती है। Sperm के निम्न चार भाग होते हैं: 1. शीर्ष, 2. ग्रीवा, 3. मध्य भाग, 4. पूँछ।

11. चयन (Selection)

किसी जानवर/मनुष्य को उसके उत्कृष्ट गुणों के कारण उसकी जनसंख्या में से चुनना और उसे प्रजनन/संतान उत्पत्ति के लिए अधिक से अधिक मौका/अवसर देना ही चयन कहलाता है। दूसरी ओर कम गुणों वाले जानवरों को नहीं चुनना/प्रजनन के मौके न देना ही निकृष्टन (Culling) कहलाता है।

चयन के प्रकार:

  1. प्राकृतिक चयन (Natural Selection)
  2. कृत्रिम चयन (Artificial Selection)

कृत्रिम चयन पशुपालक/मानव द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य अच्छे गुणों, अधिक उत्पादन (मांस, दूध, ऊन आदि), अच्छा वजन प्राप्त करने वाले सुअर, जानवरों को उत्पन्न करना है।

इसमें चयन के साथ-साथ चयन के तरीकों को अपनाना भी आवश्यक होता है। क्योंकि नये जीन अच्छे गुणों वाले उत्पन्न नहीं किये जा सकते लेकिन चयन की विधि अपनाकर दूसरे जानवरों में खोजकर उनकी आनुवंशिक बनावट को बदला जा सकता है।

चयन की विधियाँ (Basis of Selection):

  1. व्यक्तिगत चयन (Individual Selection / Performance Testing):
    • इसमें पशु को बाह्य रूप से देखकर उसके जीनोटाइप तथा प्रजनन मूल्य के बारे में अनुमान लगाया जाता है।
    • इस विधि द्वारा किसी पशु का चयन एक लक्षणों की सूची के आधार पर / गुणांकन पत्र विधि भी कहते हैं।
    • इस विधि की accuracy heritability (h2) पर निर्भर करती है (Higher heritability = more accuracy)।
    • लाभ: नर व मादा दोनों के चयन के लिए सर्वोत्तम। कम समय में अधिक पशुओं का चयन किया जा सकता है।
    • हानि/त्रुटियाँ: पशु के बाह्य गुणों को देखकर उसके एकदम सही जीनोटाइप व प्रजनन मूल्य का पता नहीं लगाया जा सकता। नर व मादा का चयन जनक के रूप में एक साथ नहीं कर सकते हैं। पशु के गुणों का अभिलेख परिपक्व होने के बाद ही मिल पाता है।
  2. वंशावली चयन (Pedigree Selection):
    • इस प्रकार के चयन में चयनकर्ता/पशुपालक के पास चयनित होने वाले पशु के बारे में सूचनाएँ वंशावली के रूप में उपलब्ध रहती हैं।
    • अतः पशुपालक पशु के पूर्वजों जैसे माता-पिता, दादा-दादी, परदादा-परदादी जैसे निकटतम संबंधियों के गुणों को देखकर पशु का चयन करते हैं। यह चयन कम आयु में ही कर लिया जाता है।
    • लाभ: अधिक वंशागति वाले गुणों के लिए अच्छी विधि है। वे गुण जो बाद में अधिक समय बाद अभिव्यक्त होते हैं जैसे दुग्ध उत्पादन, उनके लिए सर्वोत्तम तरीका है। यह संतति परीक्षण में सहायक है।
    • त्रुटियाँ: सभी संतानों में पूर्वजों के लक्षण नहीं आते हैं क्योंकि ये सभी वातावरणीय व अन्य कारकों द्वारा प्रभावित होते हैं। Inbreeding करने वाले पशुओं में यह विधि उपयुक्त नहीं है।
  3. संतति परीक्षण (Progeny Test):
    • इसके द्वारा पशु की वास्तविक प्रजनन क्षमता का पता चलता है।
    • इसमें पशु के genotype का मूल्यांकन उसकी संतति (progeny) का प्रदर्शन के आधार पर करके उसका चयन किया जाता है।
    • इसमें उसी सांड का चयन किया जाता है जिसकी संतानों या बछड़ियों का उत्पादन अधिक होता है।
    • यह केवल उन्हीं सांडों में उपयुक्त है जो कृत्रिम गर्भाधान में प्रयोग किये जाते हैं या जो जीव अधिक संतान उत्पन्न करते हैं। यह अधिकांशतः सुअरों/मुर्गियों में अपनाया जाता है।
    • लाभ: चयन की सर्वोत्तम विधि जिनमें इच्छित गुण एक ही लिंग/जनक द्वारा प्रदर्शित होते हैं।
    • त्रुटियाँ: इसकी प्रक्रिया बहुत खर्चीली व महँगी है। परिणाम काफी समय बाद मिलते हैं। तब तक पशु की आयु, चयनित पशु या संतति दुर्घटनाग्रस्त, बीमार हो सकती है।
    • P.T. के लिए आवश्यकता: 1. चयन होने वाले पशुओं को समान अवसर देने चाहिए, 2. इनकी सभी संततियों को समान वातावरण व खानपान देना चाहिए, 3. कम से कम 5 संतति होनी चाहिए।
    • Proven Sire: संतति परीक्षण के दौरान जिस उत्तम नस्ल एवं उन्नत नस्ल के सांड का चयन किया जाता है। संतति परीक्षण द्वारा श्रेष्ठ गुणों को संतति में देने के लिए proven sire का चयन किया जाता है। नई संतति की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है।
  4. Family Selection (परिवार चयन):
    • एक परिवार एक संबंधियों के समूह को प्रदर्शित करता है। फैमिली सिलेक्शन में किसी जानवर या जीव की व्यक्तिगत और पारिवारिक गुण/सूचनाओं को संयुक्त रूप से देखा जाता है।
    • इसको सामान्यतः मुर्गियों में अपनाया जाता है। इसमें उस जानवर के भाई-बहन, सौतेले भाई-बहनों का उत्पादन को देखकर चयन किया जाता है।

12. चयन के तरीके (Methods of Selection)

  1. Tandem Method (टेंडम विधि):
    • इस विधि के अनुसार एक बार में एक लक्षण का चयन किया जाता है और उस गुण का विकास इच्छित स्तर तक किया जाता है। इसके बाद दूसरे गुण के विकास का प्रयास किया जाता है।
    • यह विधि धनात्मक सह-संबंधों वाले गुणों (एक को विकसित करने पर दूसरा गुण स्वतः बढ़ता है) के लिए उपयुक्त है।
    • इस विधि द्वारा कभी-कभी बहुत अच्छे गुणों वाले जीन जनसंख्या में से विलुप्त हो जाते हैं, जैसे दूध की मात्रा और फैट की। (नोट: यह वाक्य विरोधाभासी लग सकता है, शायद इसका अर्थ है कि एक पर ध्यान केंद्रित करने से दूसरा उपेक्षित हो सकता है)।
    • इसमें अधिक समय लगता है।
  2. Independent Culling Level (स्वतंत्र निकृष्टन स्तर):
    • यह tendon method से अधिक उपयुक्त है। इस विधि में दो या दो से अधिक गुणों का विकास एक साथ किया जाता है।
    • इसके प्रत्येक गुण के विकास का एक न्यूनतम स्तर निर्धारित किया जाता है। यदि कोई जानवर उस न्यूनतम स्तर को प्राप्त नहीं कर पाता है, तो उसकी छंटनी कर दी जाती है।
    • यह एक आसान तरीका है। इसमें जानवर के गुणों की केवल फीनोटाइपिक जानकारी का उपयोग किया जाता है।
    • इसमें एक साथ कई गुणों के लिए चयन प्रक्रिया अपनाई जाती है। टैंडम मेथड के ऋणात्मक सहसंबंध से गुण मिलती है। (नोट: अंतिम वाक्य का अर्थ स्पष्ट नहीं है, संभवतः यह टैंडम की कमी को दूर करता है)।
  3. Selection Index / Total Score Method (चयन सूचकांक / कुल अंक विधि):
    • यह भी I.C.L. के समान है। इसमें एक साथ एक से अधिक गुणों का विकास किया जाता है। इस विधि द्वारा अधिक genetic gain लेने का प्रयास किया जाता है।
    • इस विधि में सभी गुणों के लिए उनके महत्व व वंशागति दोनों के अनुसार अंकतालिका बनाई जाती है।
    • जो जानवर इस अंक तालिका में अपने गुणों के आधार पर अधिक स्कोर/अंक प्राप्त करता है, उसका चयन कर लिया जाता है।
    • यह tendon method or I.C.L. दोनों से बेहतर विधि है।

13. कोशिका विभाजन (Cell Division)

नई कोशिका पूर्ववर्ती कोशिका से बनती है (रुडोल्फ विर्चो)। कार्ल नगेली: नये केंद्रक के विभाजन से बनते हैं (स्ट्रॉसवर्गर)।

कोशिका विभाजन तीन प्रकार का होता है: 1. समसूत्री (Mitosis), 2. अर्धसूत्री (Meiosis), 3. असूत्री (Amitosis)।

कोशिका चक्र (Cell Cycle):

किसी कोशिका के सम्पूर्ण जीवन में घटित होने वाले परिवर्तन।

I. अंतरावस्था (Interphase)

  • G1 Phase (Pre DNA synthesis phase): नये कोशिकाओं का निर्माण प्रारम्भ, जीवद्रव्य का निर्माण, RNA व प्रोटीन निर्माण। (जब G1 अवस्था में कोशिका विभाजन निरस्त हो जाता है तो उसे G0 अवस्था कहते हैं।)
  • S Phase (DNA synthesis phase): DNA का संश्लेषण, सेंट्रिओल का निर्माण।
  • G2 Phase (Post DNA synthesis phase): संश्लेषण अवस्था। कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है। कोशिका विभाजन की वास्तविक तैयारी G2 phase में होती है।

II. विभाजन अवस्था (M-Phase)

कोशिका चक्र की सबसे छोटी अवस्था।

  • केंद्रक विभाजन (Karyokinesis): Prophase, Metaphase, Anaphase, Telophase.
  • कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis): संकुचन वलय/खाँच निर्माण द्वारा (जन्तु कोशिका), कोशिका पट्टिका द्वारा (पादप कोशिका)।

A. समसूत्री विभाजन (Mitosis)

  1. प्रोफेज (Prophase): क्रोमैटिन धागे संघनित होकर क्रोमोसोम बनाते हैं। तारक केंद्र विपरीत ध्रुवों पर पहुँच जाते हैं। तारक किरणें बनती हैं। केंद्रक झिल्ली व केंद्रिका लुप्त हो जाती हैं।
  2. मेटाफेज (Metaphase): क्रोमोसोम मध्य रेखा पर व्यवस्थित होकर मेटाफेज प्लेट बनाते हैं (मेटाकाइनेसिस)। क्रोमोसोमल तंतु (पोल-सेंट्रोमियर), अवलंबन तंतु (पोल-पोल) का निर्माण। क्रोमोसोम का लंबाई में सेंट्रोमियर तक फटना (सेंट्रोमियर विभाजित नहीं होता)। द्विगुणित क्रोमैटिड स्पष्ट दिखाई देते हैं।
  3. एनाफेज (Anaphase): इंटरजोनल फाइबर/अंतर क्षेत्रीय तंतुओं का निर्माण। सेंट्रोमियर का विभाजन। क्रोमोसोम (अब एकल क्रोमैटिड वाले) दुगुने हो जाते हैं। क्रोमोसोम ध्रुवों की ओर गति करते हैं।
  4. टीलोफेज (Telophase): ध्रुवों पर क्रोमोसोम के चारों ओर केंद्रक झिल्ली व केंद्रिका प्रकट होना। कोशिका द्रव विभाजन।

B. अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis)

मियोसिस नाम: फार्मर व मूरे ने दिया। मियोसिस में दो विभाजन होते हैं: मियोसिस-I और मियोसिस-II.

  • मियोसिस-I (Meiosis-I): इसमें क्रोमोसोम का विभाजन नहीं होता, केवल समजात गुणसूत्र पृथक होते हैं। प्रत्येक पुत्री कोशिका में जोड़े का केवल एक गुणसूत्र होता है (Reductional division)।
  • मियोसिस-II (Meiosis-II): यह माइटोसिस/समसूत्री विभाजन के समान होता है। इसमें क्रोमोसोम/सेंट्रोमियर का विभाजन होता है (Equational division)।

मियोसिस में केंद्रक का विभाजन तो दो बार होता है जबकि क्रोमोसोम का विभाजन केवल एक बार (मियोसिस-II एनाफेज) होता है।

मियोसिस-I की अवस्थाएँ:

  1. प्रोफेज-I (Prophase-I): इसकी निम्न 5 उपअवस्थाएँ होती हैं:
    • लेप्टोटीन (Leptotene) / तनुपट्ट: क्रोमोसोम मणिकामय। क्रोमोसोम सेंट्रीओल की तरफ मुड़कर बुके/गुलदस्ता अवस्था बनाते हैं।
    • जाइगोटीन (Zygotene) / युग्मपट्ट: समजात गुणसूत्र सिनेप्सिस द्वारा जुड़ते हैं। समजात गुणसूत्रों के जोड़े बाइवेलेंट कहलाते हैं।
    • पैकिटीन (Pachytene) / स्थूलपट्ट: (नोट में लिखा है "समजात गुणसूत्र सिनेप्सिस द्वारा जुड़ते हैं", यह जाइगोटीन में शुरू होता है और यहाँ पूर्ण होता है)। जीन विनिमय (Crossing Over) होता है। काएज्मेटा (Chiasmata) का निर्माण।
    • डिप्लोटीन (Diplotene) / द्विपट्ट: उपांतीभवन (Terminalization) प्रारम्भ। समजात गुणसूत्रों का जिप के समान खुलकर अलग होना (सिनेप्टोनिमल कॉम्प्लेक्स विघटित होता है, पर काएज्मेटा पर जुड़े रहते हैं)।
    • डायाकाइनेसिस (Diakinesis) / पारगतिक्रम: उपांतीभवन पूर्ण हो जाना। तारक केंद्र विपरीत ध्रुव पर पहुँच जाते हैं। केंद्रक झिल्ली व केंद्रिका का लुप्त होना।
  2. मेटाफेज-I (Metaphase-I): बाइवेलेंट गुणसूत्र मध्य रेखा पर व्यवस्थित। सेंट्रोमियर ध्रुवों की ओर व भुजाएँ मध्य रेखा की ओर। तीन प्रकार के तर्कु तंतु (स्पिंडल फाइबर) बनते हैं: 1. क्रोमोसोमल फाइबर, 2. कंटीन्यूअस/सपोर्टिंग फाइबर, 3. इंटरजोनल (यह एनाफेज में अधिक स्पष्ट)।
  3. एनाफेज-I (Anaphase-I): समजात गुणसूत्र पृथक होकर ध्रुवों पर चले जाते हैं (Sister chromatids remain attached)।
  4. टीलोफेज-I (Telophase-I): माइटोसिस टीलोफेज के समान।
  5. साइटोकाइनेसिस-I (Cytokinesis-I): वलय या खाँच निर्माण विधि द्वारा।

(मियोसिस-II की अवस्थाएँ (प्रोफेज-II, मेटाफेज-II, एनाफेज-II, टीलोफेज-II) समसूत्री विभाजन के समान होती हैं।)

C. असूत्री विभाजन (Amitosis)

खोजकर्ता: फ्लेमिंग ने समझाया। केंद्रक विभाजन व कोशिका द्रव विभाजन एक साथ संकुचन विधि द्वारा होता है। केंद्रक विभाजन समान या असमान हो सकता है। यह सबसे तीव्र विभाजन है। आदिम प्रकार का विभाजन।

नोट:

मूल दस्तावेज़ में कोशिका विभाजन (समसूत्री और अर्धसूत्री) के कुछ चित्र शामिल थे। वे चित्र यहाँ पाठ के रूप में प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं।

(The original document included some diagrams for cell division (mitosis and meiosis). Those diagrams could not be rendered as text here.)

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DR K K SINGH

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